सुशासन का विकास: नीतीश सरकार के पूर्ण विकास से कोसों दूर मशरक बड़ी मुसहर टोली

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छपरा: मशरक कहने को तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकास की बातें करतें हैं और विकास पुरुष की पदवी से नवाजे भी गये है पर उनका विकास देखने के लिए सारण ज़िले के मशरक प्रखंड के पूर्वी पंचायत के महादलित टोला बड़ी मुसहर टोली में आना पड़ेगा।जो आज यह टोला मशरक नगर पंचायत का एक हिस्सा है जहा नगर पंचायत की कोई सुविधाएं नही पहुची हैं यहां के लोग पंचायत या नगर पंचायत में क्या विकास होगा इससे कोसों दूर है। यह टोला विकास से पूरी तरह कटा हुआ है। देश के दूसरे गाँवों की तरह यहाँ भी महादलित, मुख्य विकसित बस्ती से दूर के टोले में अलग-थलग रहते हैं।महादलितों के इस टोले में अब तक तो बिजली पहुंची है पर पानी और सामुदायिक शौचालय सहित घरों में बनने वाले शौचालय यहां न के बराबर है।और न ही टोले में बाकी सरकारी योजनाओं का कोई लाभ ही दिखता है। मनरेगा से टोले के अंदर सड़क तो नज़र आता है लेकिन मुख्य सड़क तक अभी बनी नहीं है।

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कमजोरी से कांपते हुए हरेंद्र राउत कहते हैं कि यहां शाम के अजोरे में खाना खा लिया जाता है क्यूंकि बिजली टोले में पहुंची हैं पर अधिकांश घरों में नही।यूं तो जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर और प्रखंड मुख्यालय से 500 मीटर की दूरी पर एस एच-73 के किनारे अवस्थित है। लेकिन टोले में जाने के लिए किसी भी तरह का सड़क नही है।टोले में जाते ही कई लोग हमें घेर कर खड़े हो जाते हैं जिनमें महिलाएं, युवा और और बच्चे भी हैं। यहां इक्का-दुक्का लोगों के पांव में ही चप्पलें दिखती हैं।एक बूढ़े व्यक्ति से मैंने पूछा कि नंगे पांव क्यों चल रहे हैं तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “ग़रीब आदमी हैं पहले खायेगा कि चप्पल ख़रीदेगा।लोगों ने बताया कि इस टोले में लगभग 100 घर हैं हालांकि उस हिसाब से लोग दिखाई नहीं दे रहे थे।गाँव के निवासी राजेंद्र इसकी वजह बताते हैं, “हम महादलित लोग हैं, चार महीने इस गांव में रहते हैं, फिर दूसरी जगह कहीं ईंट-भट्टे पर काम करने चले जाते हैं।

बहुत से लोग तो दूसरे राज्यों में पलायन कर गए। कुछ लोग आठ-आठ महीने दूसरे शहर काम पर चले जाते हैं। यहां काम नहीं मिलेगा तो क्या करेंगे सरकार थोड़ा ध्यान देती तो हम भी बच्चों को शिक्षा के रास्ते ले जाते। टोले में जबरदस्ती दबंगों ने हम लोगों की जमीन पर विद्यालय खोल दिया पर शिक्षा व्यवस्था एक दम से ठप्प पड़ी हैं।विधालय तो खुलता हैं पर बच्चे परिवार की भूख में रोजगार के लिए बड़ों के साथ ही रम जातें है। विद्यालय में शिक्षक बच्चों के आने का इंतजार करते रहते हैं। पुलिस राउत बताते हैं, “हम सम्पन्न टोले के यहां फ़सल काटते हैं, कोई बोझा ढो लेता है।किसी से बोझा ढोया नहीं जाता तो ईंट-भट्टे पर मज़दूरी कर लेता है।बस किसी तरह बच्चों को पाल रहे हैं।टोले के बच्चे होश संभालते ही गोला मंडी में जाकर कमानें लगते हैं। सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ के बारे में महिलाएं बताती है कि कभी कभार टीवी मरीज की खोजबीन के लिए कैम्प लगता है वही उनकेे टोले के लोगों के लिए सरकारी अस्पताल में सुविधाएं बंद हैं इसका कारण वह बताती है कि सरकारी अस्पताल के कर्मचारी बोलते हैं कि तुम लोगों का देह (शरीर) दुर्गंध देता है। हमारे टोले की गर्भवती महिलाओं की डिलेवरी घर पर ही होती है।

टोले में बिजली तो है लेकिन यहां इससे भी बड़ी समस्या है पानी की।टोले की कलाउती बताती हैं कि यहां चापाकल लगे हैं और वे भी पंचायत के मुखिया की मदद से। वही पूर्वी पंचायत के सभी वार्डों में जल नल योजना का पानी पहुंच गया है पर इस टोले में अभी तक लोग पानी के लिए बगल के टोले पर आश्रित है। वे बताते हैं कि वे गरीब है पेट की आग बुझाने के लिए वे दिन भर जी तोड़ मेहनत करतें हैं तब जाकर उनको शाम में खाना उपलब्ध होता है।वो कहती हैं “गर्मियों में तो पास के गांवों से पानी लाना पड़ता है. वहां पर चापाकल खाली रहने पर ही पानी भरने की अनुमति मिलती है।जल नल योजना के तहत मिलने वाला पानी उनके टोले में नही पहुंचा हैं वही सरकार का दावा है कि सात निश्चय योजना के तहत सबसे पहले महादलित टोले में ही पीने का साफ पानी पहुचाना हैं पर इस टोले में अभी तक पानी नही पहुंचा पर बगल के दबंग यादवों और राजपूतों के टोले में जल नल योजना की टंकी लगे कइ महीने बीत चुके हैं और वे सभी साफ पानी पी रहें हैं।वही कुछ महीनों पहले बोरिंग हुआ है‌ पर उसके बाद कोई देखने तक नही आया।

टोले के निवासी राजेंद्र राउत कहते हैं, “हम लोग अनपढ़ हैं, हम डीएम या कोर्ट तक नहीं पहुंच पाते।हम लोग ज़्यादा से ज़्यादा मुखिया को कहते हैं,पर वो भी अब बोलते हैं कि अब पंचायत भंग हो गया है और टोला नगर पंचायत में शामिल कर लिया गया है। मुखिया थें तों गांव की समस्याओं पर ध्यान देते थे पर अब वे भी क्या करें। यहां किसी घर में कोई टीवी या स्मार्टफ़ोन नहीं था इसलिए बाहर की दुनिया और चुनावी घटनाओं से लोग अनजान ही है।जहां सरकारें डिजिटल कक्षाएं लगवा रहीं हैं, डिजिटल चुनाव करवा रही है, वहां डिजीटल जीवन के बारे में सोच पाना भी मुश्किल है।इस एक छोटे से टोले में ऐसा भी देखने को मिला कि योजनाओं का लाभ सबको एक समान नहीं मिला।किसी ने कहा कि उन्हें कोरोना काल में तीन बार सरकार से पांच सौ रुपये मिले और कुछ लोगों ने दावा किया कि उन्हें एक बार भी पैसा नहीं मिला, क्यूंकि अधिकांश लोगों का आधार ही नही बना हैं।

वहीं कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें कोरोना काल में प्रधानमंत्री द्वारा मिलने वाला राशन मिलने से घर में खाने की समस्या दूर हुई थी पर अधिकांश का नाम भी राशन सूची में नही है तों उन्हें भूखों मरने की नौबत आ गई है। टोले के महिलाएं बताती है कि पहले पक्का मकान बनाने के लिए सरकार से रुपये मिलते थे जिसमें से अधिकांश रूपये मुखिया के द्वारा कमीशन और बचें रूपये घर के मर्द शराब पीने में खत्म कर देते थे पर मुखिया प्रतिनिधि अमर सिंह ने इस बार के रूपयों से जबरदस्ती मकान बनवाना शुरू किया और लेन देन का हिसाब घर की महिलाओं के जिम्मे दिया जिससे टोले में अब पक्के छतदार मकान दिख रहे हैं वही बहुतों के नाम सूची में नही रहने और बढ़ते परिवार के हिसाब से जमीन नही रहने से ज़्यादातर घर कच्चे थे या पक्के होने के बावजूद भी ठीक से नहीं बन पाए है।टोले की महिलाएं कहती हैं, “यहां शादी लड़की हो या लड़का बड़ी समस्या हैं दो-तीन परिवार लड़की देखने के लिए आए लेकिन देखा कि यहां तो कुछ नहीं है, इसलिए शादी की बात आगे बढ़ी ही नहीं।

यहां कोई अपनी बेटी की शादी क्यों करेगा? आप खुद देख लीजिए यहां एक शौचालय तक नहीं है।उनकी बात सही थी क्योंकि वहां जितने भी घर थे उनमें कोई शौचालय नहीं था। जबकि बिहार को भी ‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित किया जा चुका है।इस मामले में सबसे पहले गांव के मुखिया से बात करनी चाही। उन्होंने हमें फ़ोन पर मिलने के लिए बुलाया लेकिन उसके बाद उनका फ़ोन बंद हो गया। दूसरे दिन जब मिले तो उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाए गए हैं। वही पंचायत का यह टोला जल नल योजना में पीएचडी विभाग के अधीन है। संबंधित विभाग में आधा दर्जन बार शिकायत की गई पर उन्होंने काम मे कोई प्रगति नहीं किया। हम घंटों इंतजार कर ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि वे नये आए हैं संबंधित टोले की जानकारी ली जा रही है जो भी सुविधाएं सरकार की तरफ से उनको मिलनी चाहिए वो सभी उन्हें प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध करायी जाएंगी।