परवेज अख्तर/सिवान: महाराजगंज ईदुल अजहा का त्यौहार और अजहा के मायने यह होते हैं कि अपने रब के लिए कुर्बानी,त्याग,बलिदान देना.उक्त बाते नहर के शाही जामा मस्जिद के इमाम मौलाना इसरारुल हक साहब ने कही.उन्होंने ने कहा कि कुर्बानी सबसे बड़ी इबादत है.अल्लाह को कुर्बानी से ज्यादा कोई और अमल प्यारा नहीं.बकरीद तीन दिन का त्यौहार है.बकरीद की नमाज तो पहले दिन पढ़ी जाती है,लेकिन कुर्बानी तीन दिनों तक रहता है. कुर्बानी किन लोगों पर जायज है, यह जानने से पहले यह जान लेना ज्यादा जरूरी है कि इस त्यौहार के पीछे अवधारणा क्या है? हजरत इब्राहीम अल्लाह के पैगम्बर हुए हैं.
उन्होंने एक रात ख़्वाब देखा कि अल्लाह उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुरबानी चाह रहे हैं.जागे तो वह परेशान हो गए. सबसे प्यारी चीज में तो उनके इकलौते बेटे इस्माइल ही थे. उन्होंने उन्हें अल्लाह की राह में कुर्बान करने का फैसला कर लिया, लेकिन यह कुर्बानी आसान नहीं थी.इसके लिए उन्होंने आंख में पट्टी बांध ली.लेकिन, जब कुर्बानी के बाद उन्होंने आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा जिंदा खड़ा है और उसकी जगह एक भेड़ जिबह हुआ लेटा था. उसके बाद से जानवरों की कुर्बानी शुरू हुई.
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