कभी अलविदा ना कहना ….और जब डीएसपी की कुर्सी छोड़, राजनीति में कूद पड़े थे राम विलास पासवान

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  • 1969 में उन्हें अलौली विधान सभा से मिला टिकट और पहली बार जीतकर पहुँचे थे विधानसभा
  • हाजीपुर लोकसभा से 1989 में राम विलास ने रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीतकर बने थे सांसद

परवेज़ अख्तर/सिवान:

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बिहार की राजनीति में ऐसा पहली बार हो रहा है जब लोक जनशक्ति पार्टी बिहार का चुनाव इसके संस्थापक राम विलास पासवान के बगैर लड़ेगी।बतादें कि गुरुवार की देर संध्या राम विलास पासवान(75 वर्ष) का निधन हो गया।हालांकि जब राम विलास पासवान किसी गंभीर  बीमारी के कारण वे बीमार चल रहे थे।और इसी बीच चिकित्सकीय रिपोर्ट के बाद यह तय हो चुका था कि लोजपा इस बार उनके बेटे चिराग पासवान के नेतृत्व में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ेगी।

डीएसपी की नौकरी मंजूर नहीं की:

बताते चलें कि राम विलास पासवान का कभी पुलिस विभाग में जाने वाले थे।हालांकि नियति को यह मंजूर नहीं हुआ और उनके पांव राजनीति की ओर अचानक मुड़ गए। राम विलास पासवान का जन्म खगड़िया के एक दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने एमए और एलएलबी करने के बाद यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी।आपको बता दूं  कि उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा क्लियर भी कर ली. उनका चयन डीएसपी पद के लिए हुआ था।

संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का थामा दामन:

लेकिन ठीक इसी समय जब उनका चयन यूपीएससी में हुआ, तभी वे समाजवादी नेता राम सजीवन के संपर्क में आए और उन्होंने डीएसपी की कुर्सी छोड़कर राजनीति का रुख अख्तियार कर लिया।उनके तेज-तर्रार व्यक्तित्व का असर था कि संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) ने 1969 में उन्हें अलौली विधानसभा से टिकट दिया। उन्होंने चुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे। अपनी इस पहली जीत के बाद पासवान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।आपातकाल के बाद 1977 में वह जनता पार्टी के टिकट पर हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़े मजे की बात यह कि उन्हें इस सीट से बंपर जीत मिली। इस जीत ने सबसे अधिक वोटों के अंतर से जीतने का विश्व रिकॉर्ड बना लिया।फिर 1989 में राम विलास ने इसी सीट से अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा।बाद के दिनों में सबसे अधिक वोटों से जीतने का उनका ये रिकॉर्ड नरसिम्हा राव समेत कई दूसरे नेताओं ने तोड़ा।

पासवान ने 2000 में किया लोजपा का गठन:

पासवान पिछले 29 सालों में तकरीबन हर प्रधानमंत्री के साथ काम कर चुके हैं। राम विलास पासवान ने साल 2000 में लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया। राम विलास पासवान पार्टी के अध्यक्ष बने और लंबे अरसे तक रहे। साल 2019 में लोकसभा चुनावों से पहले राम विलास पासवान ने अपने बेटे चिराग पासवान को पार्टी की बागडोर थमाई। देखना होगा कि अब चिराग पासवान अपने पिता की राजनीतिक विरासत को कितनी दूर तक ले जा पाते हैं।हालांकि उन्होंने फिलहाल तो नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।