सोनपुर मेला के अस्तित्व को बचाने के लिए आगे आये साधु-संत, वैदिक मंत्रोच्चार के साथ की शुरूआत

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छपरा: विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला के अस्तित्व को बचाने और इसकी संरक्षण, संवर्धन ,विकास और मेले के विस्तार के साथ लाखों लोगों के धार्मिक आस्था बनाए रखने के लिए साधु संत , आचार्य,मंडलेश्वर और विभिन्न अखाड़ों से जुड़े संत _महात्मा और स्थानीय लोगों ने सरकार के आदेश के विरुद्ध ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत मेले का विधिवत उद्घाटन संत महात्मा महामंडलेश्वर के द्वारा दीप प्रज्वलित कर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ जौहरी बाजार में किया गया । कार्यक्रम का अध्यक्षता सोनपुर लोकसेवा आश्रम के व्यवस्थापक संत मौनी बाबा ने की जब कि संचालन डॉ अजित कुमार ने किया । इस मौके पर उद्घाटन करते हुए मौनी बाबा ने कहा कि इस मेले में देश- विदेश से संत महात्मा आते हैं और मेले पर प्रतिबंध लगाना और इनकी आस्था और धार्मिक भावना के साथ कुटाराघाट है। मौनी बाबा ने यह कहा कि मेले पर प्रतिबंध तुगलकी फरमान है जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।

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डॉ अजीत कुमार ने इस मौके पर कहा कि विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र के संरक्षण ,सर्वजन, विकास, विस्तार और मेले के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत बिहार सरकार के आदेश को अस्वीकार करते हुए हजारों वर्ष से जनता का मिला जनता के लिए साधु-संतों के द्वारा आज संकेतिक उद्घाटन किया गया । गजेंद्र मोक्ष देव स्थान सोनपुर के संत लक्ष्मनाचार्य जी ने कहा कि पुष्कर मेला राजस्थान में लग सकता है ।

नेशनल ट्रेड फेयर दिल्ली जिसमें बिहार भी सहभागी है ।सिमरिया मेला बेगूसराय ,राजगीर मेला, कुंभ स्नान हो सकता है। कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों लोगों की गंगा स्नान हो सकता है । हॉट ,बाजार में भीड़ जम सकती है । हजारों लोग कोट कचहरी में जा सकते हैं।तो फिर भी विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र मेला सोनपुर क्यों नहीं। उन्होंने बिहार सरकार पर आरोप लगाया कि नीतीश कुमार की सरकार पावापुरी और राजगीर मेले को गुलजार कर रही है ।

करोड़ों रुपए सरकार उसके विकास में लगा रही है। लगाना भी चाहिए मेरा विरोध नहीं है। लेकिन विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र मेला को सर्वनाश की एवज में यह मुझे कतई बर्दाश्त नहीं ।हरिहर क्षेत्र मेला पर प्रतिबंध बिहार सरकार के तुगलकी फरमान है और यह सरकार की दोहरी नीति और सौतेला व्यवहार है। उद्घाटन समारोह में जगतगुरु स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी नौलखा मंदिर के मुख्य प्रबंधक अध्यक्ष, सुशील चंद्र शास्त्री जी प्रधान पुजारी हरिहरनाथ मंदिर सोनपुर, महर्षि आलोक आनंद महंत पीठाधीश्वर गुप्त कामाख्या पीठ असम, जगतगुरु कमलानंद आचार्य, दाऊद नगर पीठाधी, बम बम बाबा, मोती बाबा, स्वामी लाल दास जी महाराज सोनपुर, आचार्य श्री पंडित मृत्युंजय कुमार दुबे, उमेश तिवारी, संत रवि प्रकाश तिवारी, हरिद्वार के बाद डॉक्टर अरुण गिरी, के अलावे अधिवक्ता विश्वनाथ प्रसाद सिंह, पुष्कर सिंह राजपूत,डॉ अशोक कुमार सिंह सहित अन्य लोग उपस्थित रहे । हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले का उद्घाटन समारोह में डॉ अजीत कुमार के साथ दर्जनों लोगों ने माँग किया है कि अगले साल से राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री से सोनपुर मेले के उद्घाटन हो जिससे कि विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले की खोई हुई प्रतिष्ठा ,स्वरूप और आकार एवं प्रसिद्धि पुनः स्थापित हो सके।

यह मेला पौराणिक,धार्मिक और संस्कृति व्याख्यान व इतिहास में वर्णित है कि इस मेले में हजारों वर्षों से संपूर्ण भारत तथा विदेश से तीर्थयात्री हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा और गंडक के पवित्र संगम पर स्थित कोनहारा घाट हरिपुर (हाजीपुर), सारण जिले के सोनपुर अनुमंडल में स्थित काली घाट ,गंगा घाट धाम, सबलपुर और दक्षिण वाहनी गंगा नदी पहलेजाधाम सोनपुर में लगभग 25 से 40 लाख लोग स्नान कर बाबा हरिहरनाथ मंदिर सोनपुर में पूजा अर्चना करते हैं। यहां संपूर्ण भारत से श्रद्धालु, संत महात्मा ,किसान और व्यापारी आकर एक माह तक व्यापार एवं पूजा अर्चना करते हैं।

हरिहर क्षेत्र मेला 325 ईसा पूर्व पहले से लगने की जानकारी मिलती है। उत्तर वैदिक काल में लगने वाले इस मेले को लोग छत्तर मेला सोनपुर के नाम से भी जानते हैं। बिहार की राजधानी पटना से 15 किलोमीटर और वैशाली जिला मुख्यालय से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मेले में उस समय हाथी, घोड़ा ,ऊंट, गाय ,बैल ,भैंस, बकरा- बकरी ,भालू, बंदर, कुत्ता ,चिड़िया का बड़ा बाजार लगता था। जहां के राजा महाराजा उनकी खरीदारी करने आते थे। मौर्य वंश के शासक चंद्रगुप्त मौर्य ( 340 ईसा पूर्व 298ईसा पूर्व), मुगल शासक अकबर 1857 ग़दर के नायक बाबू वीर कुंवर सिंह इस मेले में हाथी घोड़े की खरीदारी की थी। तथा 1803 में रॉबर्ट क्लाइव हरिहर क्षेत्र में ले ले गोरी का बड़ा अस्तकबल बनवाया था। 1804 ईस्वी में अंग्रेजी सरकार के गजट में सोनपुर मेला की भव्यता और एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला के बारे में वर्णन अंकित है।