शिक्षक दिवस: बिहार के इस गांव में नाव पर पाठशाला, गंगा नदी की लहरों पर बच्चे करते हैं पढ़ाई

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पटना: आज शिक्षक दिवस है और पूरा देश पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के मौके पर शैक्षणिक उत्थान को लेकर बड़े-बड़े संकल्प ले रहा है इन सबके बीच बिहार के कटिहार से पढ़ाई लिखाई की एक बेहद खूबसूरत तस्वीर सामने आई है। यह तस्वीर है नाव में पाठशाला। सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा हो लेकिन बात बिल्कुल सच है। कटिहार के मनिहारी अनुमंडल के सुदूर गांव मारालैंड बस्ती में तीन जुनूनी युवक गंगा की लहरों पर पाठशाला चलाते हैं।

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आपदा में निकाला अवसर

दरअसल कटिहार का मनिहारी अनुमंडल इन दिनों गंगा नदी में आई भीषण बाढ़ की चपेट में है। कई गांव अभी भी बाढ़ प्रभावित है जहां चारों ओर बाढ़ के पानी का साम्राज्य है। इन्हीं के बीच बसा है मारालैंड बस्ती जो भौगोलिक रुप से गंगा की बेसिन में स्थित है। हर साल यहां बाढ़ आती है तो पूरी की पूरी बस्ती डूब जाती है। यहां के लोग बांध शरण में चले जाते हैं। जबतक बाढ़ रहती है तब तक इस इलाके में पढ़ाई लिखाई पूरी तरीके से ठप हो जाती है। क्योंकि सरकारी से लेकर निजी विद्यालय और कोचिंग तक पानी में डूब जाते हैं। इसी बस्ती में रहते हैं कुंदन, पंकज और रविंद्र नाम के तीन युवक जिन्होंने अपनी जिंदगी में इस कष्ट को भोगा है। तीनों मिलकर इस इलाके में प्राइवेट कोचिंग चलाते हैं लेकिन शनिवार और रविवार को गांव के बच्चों को निशुल्क पढ़ाते हैं। बाढ़ ने जमीन इनकी कोचिंग अपनी चपेट में ले लिया तो कुछ दिन बांध पर पढ़ाई शुरू हुई। लेकिन और ज्यादा दिन नहीं चल सकी क्योंकि वहां बच्चे, बूढ़े, जानवर सभी बहुत कम जगह में साथ साथ रहने को मजबूर थे। बार-बार वहां कभी नेता और कभी प्रशासन की गाड़ियां आती थी और पढ़ाई का सिलसिला टूट जाता था। इसी बीच पंकज के दिमाग में यह बात आई कि क्यों न गंगा की धारा पर बच्चों की पाठशाला लगाई जाए क्योंकि वहां कोई नही जाता।

अधिकांश परिवारों के पास नाव होने का मिला फायदा

इस इलाके में लगभग सभी परिवारों के पास बड़े नाव हैं और बाढ़ प्रभावित होने की वजह से हर उम्र के लोग बाढ़ के साथ खुद को एडजस्ट कर चुके हैं। यहां के छोटे-छोटे बच्चे भी नाव चलाना और तैरना जानते हैं। इसलिए नाव में लगने वाली खतरनाक पाठशाला से किसी को डर नहीं लगता है। पंकज का यह आइडिया क्लिक कर गया और फिर शुरू हो गई नाव में पाठशाला। पिछले 3 महीने से यहां के बच्चे पढ़ने के लिए नाव में सवार होकर गंगा की धारा में चले जाते हैं और बांध के दूसरी तरफ नाव को किनारे लगा कर वहीं पढ़ाई शुरू हो जाती है नियमित स्कूल की तरह यहां पंकज, कुंदन और रविंद्र बच्चों को पढ़ाते हैं और उनका टेस्ट भी लेते हैं।

पढ़ाई में खुद कष्ट झेला तो अगली पीढ़ी का समझा दर्द

खतरनाक पाठशाला को लेकर शिक्षक कुंदन कुमार ने बताया कि वे इस इलाके के तमाम कठिनाइयों को झेलते हुए यहां तक पहुंचे हैं। पढ़ाई लिखाई में जो परेशानी उन्हें हुई है उसे वे खुद महसूस करते हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि इलाके के दूसरे बच्चे संसाधन के अभाव में पढ़ाई लिखाई से वंचित नहीं हों। इसीलिए अपने साथी पंकज और रविंद्र के साथ मिलकर नाव की पाठशाला चला रहे हैं। दूसरे शिक्षक रविंद्र कुमार ने बताया कि नाव इस इलाके की लाइफ-लाइन है। इसलिए नाव पर उन्हें कोई खतरा महसूस नहीं होता। बच्चे भी नाव पर पढ़ने में काफी कंफर्टेबल हैं। आठवीं के छात्र अमीर लाल का कहना है कि नाव में पढ़ते हुए उन्हें कभी डर नहीं लगता है क्योंकि उन्हें नाव की आदत लग चुकी है। गांव के सभी पढ़ने वाले बच्चे जमा होते हैं वहीं शिक्षक पहुंचते हैं फिर एक साथ कई नाव लेकर सभी भीड़ से दूर कहीं छांव में निकल जाते हैं और वही पढ़ाई होती है।