बड़हरिया:- खत्म हुआ दावों और वादों का दौर, मशीनों में कैद है जनमानस का फैसला, मतदान के बाद एहसासों ने बदले लोगों के बोल

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किसमें कितना है दम पर, चर्चाओं का बाजार गर्म

आशुतोष श्रीवास्तव/सिवान:
कसमे वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या ? कोई किसी का नहीं है बंदे, सब नाते हैं नातों का क्या ? उपरोक्त पंक्तियां बदलते परिवेश में रिश्तो के साथ-साथ दावों और वादों की हकीकत को बड़े ही गहराई से परिभाषित करती हैं पंक्तियों को पढ़ने के बाद एहसास होता है कि कहीं, उपरोक्त लिखित बातों  की महत्वता बहुत कुछ हो सकती है तो कहीं, इन्हीं पंक्तियों के हवाले, कोई आपसे बड़ा धोखा भी कर सकता है फिलहाल इसे हम राजनीति से जोड़कर देखें तो उम्मीदवारों द्वारा 3 नवंबर से पूर्व पूरे दिन इन्हीं पंक्तियों में से चुने गए शब्दों को जनता के समक्ष बार-बार और कई बार दोहराया जा रहा था इन पंक्तियों का इस्तेमाल जनता को विश्वास दिलाने के लिए किया जा रहा था  की वह उन्हें अपना कीमती मत, दें और जीत  की और अग्रसारित करें।अगर इनकी जीत हुई तो सब कुछ बदल जाएगा, ऐसे उम्मीदवार उनकी हर समस्या पर, सुधारात्मक पहल करेंगे।

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उम्मीदवारों ने एड़ी चोटी की जान लगा रखी थी और इन्हीं प्रयासों के बीच वह दिन आ गया जब ,जनता ने उम्मीदवारों  की उम्मीदों  तथा इनके द्वारा खाए गए कसमो और  किए गए वादों का ख्याल करते हुए, कड़ी सुरक्षा इंतजामातों के बीच  स्वतंत्र रूप से मतदान किया गया।और अब दावों और वादों का सिलसिला समाप्त हो चुका है जनमानस का निर्णय मशीनों में कैद है किसके  दावों  और किसके वादों में कितना दम है किसने किसको कितना समझाया, और किसको कितना समझ में  आया, यह अब उम्मीदवारों को  समझने के लिए 10 नवंबर तक इंतजार करना होगा l  बताते चलें कि आज से 6 दिनों का वक्त बचा है इस दिन का इंतजार सभी को बड़ी बेसब्री से है क्योंकि  यही वह तारीख है जो कईयों के तकदीर पर चांद सितारे लगाएगी और कईयों के पैरों तले जमीन खिसकाएगी।

वैसे मतदान बीतने के बाद से ही  उन लोगों के बोल बदल गए हैं जिनके द्वारा राजनीति में किसी एक पक्ष के लिए काम किया जा रहा था।क्योंकि मतदान  समाप्ति के बाद इन्हें इस बात का एहसास हो चुका है कि उनके पैर कहां पर है  शायद यही कारण है कि चौक चौराहे पर मतदान तिथि से पहले जो चेहरे जिस किरदार में दिखते थे उन चेहरों में उतार चढ़ाव साफ-साफ झलक रहा है बातचीत का अंदाज भी बिल्कुल बदल चुका है ऐसे चेहरों की चमक चर्चा का विषय बनी हुई है हालांकि जो जिस पार्टी का समर्थक है या जिस उम्मीदवार का चहेता है उसकी जीत संबंधित जबरदस्त प्रशंसा कर रहे हैं  लेकिन हकीकत यही है कि  जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं, फिलहाल हम भी बहुत कुछ नहीं कह सकते लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि जिनके  चेहरों पर जरूरत से ज्यादा खुशी है अधिकांश दर्द ,उनका उतना ही गहरा हो सकता है।