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लालू परिवार पर सीबीआई के छापे, बिहार की राजनीति में क्या होगा असर?

पटना: 2017 में वह भी शुक्रवार का दिन था जब सीबीआई ने रेलवे आईआरसीटीसी घोटाले के सिलसिले में पटना में लालू और राबड़ी के 10 सर्कुलर रोड आवास पर छापा मारा था। पांच साल बाद फिर से शुक्रवार को सीबीआई ने रेलवे में ‘नौकरी के लिए जमीन’ घोटाले में लालू और उनसे जुड़े लोगों के आवासों पर छापा मारा है।

आरोप है कि लालू प्रसाद ने रेल मंत्री रहने के दौरान दर्जनों लोगों को ग्रुप-डी की नौकरियां देने के बदले उनकी कीमती जमीनें करीबियों के नाम लिखवा ली थी। पांच छह साल बाद जमीनों को अपने नाम गिफ्ट करा लिया था। सीबीआई ने सितंबर 2021 में मामले की प्रारंभिक जांच शुरू की थी। अब प्राथमिकी दर्ज कर छापे मारे जा रहे हैं।

खास यह है कि छापे ऐसे समय में मारे जा रहे हैं जब बिहार में एनडीए के दो सहयोगियों भाजपा और जद (यू) के बीच कड़वाहट काफी बढ़ गई है। कुछ समय से दोनों पार्टियां एक-दूसरे को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ रही थीं।

छापे ऐसे समय में भी आए हैं जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का झुकाव तेजस्वी और राजद की तरफ बढ़ता दिख रहा है। पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई मुद्दे सामने आए हैं जब विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार का सुर एक रहा है। चाहे वह धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का मुद्दा हो या जातीय जनगणना का मुद्दा हो।

बढ़ती नजदीकियों का पहला संकेत खुद नीतीश कुमार ने दिया था। वह राबड़ी देवी के आवास पर आयोजित इफ्तार पार्टी में शामिल होने अचानक ही पहुंच गए थे। इसके बाद जदयू की ओर से आयोजित इफ्तार पार्टी में तेजस्वी और नीतीश कुमार काफी करीब दिखाई दिये। जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश और तेजस्वी 20 दिन में तीसरी बार करीब एक घंटे तक अलग-अलग मिले हैं। हालांकि राजद और जद (यू) दोनों ने बैठकों को औपचारिक बताया लेकिन इससे भाजपा की बेचैनी साफ दिखाई देती है।

राजद के विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह ने आरोप लगाया कि सीबीआई की पूरी कार्रवाई राजनीतिक से प्रेरित है। इस पर राजनीतिक विशेषज्ञ भी सहमत हैं। एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट फॉर सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा कि यह कार्रवाई नीतीश कुमार को एक सीधा संदेश है कि उन्हें उस परिवार से दूरी बनाए रखनी चाहिए जो घोटालों में शामिल है।

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में भले ही नीतीश कुमार के सदस्यों की संख्या कम है लेकिन सौदेबाजी की पूरी क्षमता है। भाजपा जानती है कि वह सत्ता बदल सकती है लेकिन कम से कम 2024 तक व्यवस्था को जारी रखना भी चाहती है। भाजपा चाहती है कि सीएम उनका बने लेकिन अभी तक वह सीएम उम्मीदवार नहीं ढूंढ पाई है।

नीतीश चाहेंगे कि जब तक उन्हें कोई बेहतर विकल्प नहीं मिल जाता, तब तक वह मुख्यमंत्री बने रहें। जिस तरह की स्थितियां बन रही हैं, नीतीश भाजपा को चिढ़ाने के लिए राजद के करीब आते दिखाई देते हैं। वैसे, राष्ट्रीय राजनीति में नंबर से कहीं अधिक लालू की आक्रामकता मायने रखती है। वह मोदी विरोधी विपक्ष के सबसे बड़े नेता के तौर पर भी जाने जाते हैं। हालांकि, बार-बार लगते आरोपों से उनकी राजनीति कमजोर हुई है। इन आरोपों के कारण ही बिहार और राष्ट्रीय राजनीति में लालू की सक्रियता की संभावना भी कम हो गई है।

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