कैबिनेट विस्तार पर कहां फंसा पेंच? नीतीश के फॉर्मूले पर BJP कैसे होगी सहमत?

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पटना : बिहार में लंबे समय से चल रहे कैबिनेट विस्तार का पेच अभी सुलझता हुआ नजर नहीं आ रहा है. मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर चर्चाएं तेज थी, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कहकर सारी अटकटों पर विराम लगा दिया कि अभी थोड़ा इंतजार करना होगा. साथ ही नीतीश ने कैबिनेट विस्तार की गेंद बीजेपी के पाले में डालते हुए कहा कि ये उनका (बीजेपी) अंदरूनी मामला है और उनकी आपस में बातचीत हो रही है, लेकिन अब ये नहीं बता सकते कि कैबिनेट का विस्तार दो दिन में होगा या फिर 10 दिन में. इससे साफ जाहिर होता है कि एनडीए में कैबिनेट बंटवारे को लेकर अभी तक बीजेपी और जेडीयू में सहमति नहीं बन पाई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कैबिनेट विस्तार में कौन से फॉर्मूला लागू होगा.

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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 16 नवंबर 2020 को नीतीश कुमार ने 14 मंत्रियों के साथ शपथ लेकर कैबिनेट गठन किया था. बीजेपी के 7, जेडीयू के 5 लेकिन मेवालाल चौधरी के इस्तीफे के बाद 4 मंत्री ही बचे, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के 1 और वीआईपी से एक विधायक को मंत्री बनाया गया. बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार को बने दो महीने हो चुके हैं लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पाया है. इसकी एक बड़ी वजह है कि इस बार जिस तरह का जनादेश आया है, उसके लिहाज से मंत्रिमंडल में बीजेपी बड़े भाई की भूमिका चाहती है, जिस पर जेडीयू राजी नहीं है और वो 50-50 का फॉर्मूले चाह रही है.

बता दें कि बिहार के 243 सदस्यों के विधानसभा में संवैधानिक प्रावधान के लिहाज से 15 फीसदी सदस्य मंत्री बनाए जा सकते हैं. इस लिहाज से बिहार में मुख्यमंत्री सहित कुल 36 मंत्री ही बन सकते हैं. इस बार बिहार चुनाव में एनडीए को 125 सीटें मिली हैं, जिनमें सबसे ज्यादा बीजेपी को 74 सीटें मिली हैं. वहीं, जेडीयू को 43, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को चार और विकास इंसाफ पार्टी को चार सीटें मिली हैं. ऐसे में विधायकों की संख्या के हिसाब से मंत्री पद के बंटवारे के फॉर्मूला की बात कही जा रही थी.

नीतीश के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए- 2 में जदयू के कोटे में मुख्यमंत्री को मिलाकर 22 विधायक मंत्री थे तो बीजेपी में उपमुख्यमंत्री समेत 13 विधायक ही मंत्री बने थे. इसके पीछे एक बड़ी वजह यह रही कि जेडीयू के विधायकों की संख्या 71 थी जबकि बीजेपी के विधायकों की संख्या 54 थी. हालांकि, इस बार उलटा है कि बीजेपी के 74 विधायक हैं और जेडीयू के 43 है. इस लिहाज से बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में जेडीयू से अधिक कैबिनेट की डिमांड कर रही है.

बीजेपी पिछले कैबिनेट के फॉर्मूले पर नीतीश सरकार में मंत्रिमंडल का बंटवारा चाहती थी, जिसमें साढ़े तीन विधायक पर एक मंत्री पद. इस आधार पर जेडीयू को संख्याबल के हिसाब से 14 मंत्री बनते हैं जबकि बीजेपी के हिस्से में 19 मंत्री पद आ सकते हैं. इसके अलावा एक HAM और एक वीआईपी को मिलना चाहिए. माना जा रहा कि इस मंत्रिमंडल के इस फॉर्मूले पर जेडीयू राजी नहीं है. वहीं, मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर हो रहे देरी के चलते विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि 14 मंत्रियों के जरिए बिहार में अपना क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण साधने की बड़ी चुनौती है. वहीं, बीजेपी के पास अपने सियासी समीकरण साधने के लिए पर्याप्त संख्या हो रही है. बीजेपी दो डिप्टी सीएम के साथ विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने किसी नेता को बैठाकर कैबिनेट में बड़े भाई की भूमिका के जरिए बिहार में अपना सियासी आधार बढ़ाना चाहती है. वहीं, नीतीश कुमार की जेडीयू मंत्रिमंडल में बराबर-बराबर जगह मांग रही है. ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार का पेच फंसा हुआ है और अब देखना है कि नीतीश की डिमांड पर बीजेपी राजी होगी या फिर कैबिनेट में बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में होगी.