तरवारा: रोजे का मतलब आध्यात्मिकता को जगाना: मौलाना मोहम्मद फैयाज अहमद मिस्बाही

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✍️परवेज़ अख्तर/एडिटर इन चीफ:
तरवारा बाजार के महाराजगंज रोड अवस्थित पुरानी जामा मस्जिद के ख़ातिबो इमाम मौलाना मोहम्मद फैयाज अहमद मिस्बाही ने रमजानुल मुबारक पर फजीलत बयान करते हुए कहा कि रमजान के महीने में अर्श से फर्श तक रहमतों की लगातार बारिश होती है।रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम के दरवाजे को बंद कर दिए जाते हैं।उन्होंने कहा कि इस महीने में क़ुरान उतरना शुरू हुआ था।रमज़ान संयम और इबादत का महीना बताया गया है।इस महीने में प्रत्येक मुस्लिम रोज़ा यानी उपवास रखता है।रमज़ान आध्यात्मिक सक्रियता का एक महीना है,जिसका प्रथम उद्देश्य व्यक्ति की आध्यात्मिकता को जगाना है।रोज़े का मुख्य उद्देश्य भौतिक चीज़ों पर मनुष्य की निर्भरता को कम करना और अपने आध्यात्मिक संकल्प को मजबूत करना है,ताकि वह पवित्रता के उच्च दायरे में प्रवेश कर सके। उन्होंने कहा कि रोज़े का मतलब यह नहीं है कि आप खाएं तो कुछ न, लेकिन खाने के बारे में सोचते रहें,रोजे के दौरान खाने के बारे में सोचन भी नहीं चाहिए।रमजान को नेकियों या पुन्यकार्यों का मौसम-ए-बहार (बसंत) कहा गया है।

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रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है।इस महीने में मुस्लमान अल्लाह की इबादत (उपासना) ज्यादा करता है।अपने परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए उपासना के साथ,कुरआन परायण,दान धर्म भी करना होता है।रमजान में रोजे को अरबी में सोम कहते हैं,जिसका मतलब है रुकना।रोजा यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना।रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोजेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है। जब मुसलमान रोजा रखता है उसके हृदय में भूखे व्यक्ति के लिए हमदर्दी पैदा होती है।रमजान में पुण्य के कामों का सबाव सत्तर गुना बढ़ा दिया जाता है।जकात इसी महीने में अदा की जाती है।रोजा झूठ,हिंसा,बुराई,रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है। इसका अभ्यास यानी पूरे एक महीना कराया जाता है ताकि इंसान पूरे साल तमाम बुराइयों से बचे।कुरान में अल्लाह ने फरमाया कि रोजा तुम्हारे ऊपर इसलिए फर्ज किया है,ताकि तुम खुदा से डरने वाले बनो और खुदा से डरने का मतलब यह है कि इंसान अपने अंदर विनम्रता तथा कोमलता पैदा करे।