​भूखे प्यासे रहने का नाम ही रोजा नहीं : हाफिज इब्राहिम

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परवेज अख्तर/सिवान : जिले के जी. बी. नगर थाना क्षेत्र के सिकंदरपुर कुम्हार टोली गांव स्थित मस्जिद के खतिबो इमाम हाफिज इब्राहिम रजा कादरी ने रमजानुल मुबारक पर फजीलत बयान करते हुए कहा कि कयामत के दिन पुकारने वाला इस तरह पुकारेगा कि अमल करने वाले को उसके अमल के बराबर सवाब दिया जाएगा। नबी स.अ. ने फरमाया कि जिसने रमजान में एक दिन का रोजा बगैर मजबुरी के या बीमारी के न रखा तो जमाना भर का रोजा भी उसकी कजा नहीं हो सकता अगर वह बाद में रख भी ले। उन्होंने कहा कि सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम रोजा नहीं है। नबी स.अ. ने फरमाया है कि मुझे ऐसे रोजेदार की परवाह नहीं है जो रोजा रखकर झूठ और गीबत करना न छोड़े। अल्लाह का एहसान है कि उसने रोजा जैसी अजीम नेमत अता फरमाई और साथ ही ताकत के लिए सेहरी की न सिर्फ इजाजत फरमाई बल्कि इसमें हमारे दिए ढेरों सवाब भी रख दिया। उन्होंने कहा कि हमारे प्यारे आका स.अ.ने फरमाया कि सेहरी करना सुन्नत है तथा खजूर एवं पानी से सेहरी करना दूसरी सुन्नत है। उन्होंने कहा कि किसी को ये गलतफहमी न हो जाए कि सेहरी रोजा के लिए शर्त है। ऐसा नहीं सेहरी के बगैर भी रोजा हो सकता है। मगर जानबूझकर सेहरी न करना मुनासिब नहीं। पहले रात को उठकर सेहरी करने की इजाजत नहीं थी, रोजा रखने वालों को सूरज डूब जाने के बाद सिर्फ उस वक्त तक खाने पीने की इजाजत थी कि जब तक वह सो न जाए। अगर सो गया तो अब उठकर खाना-पीना मना था, मगर अल्लाह ने अपने बंदों पर एहसान फरमाते हुए सेहरी की इजाजत फरमा दी। आज कल इस्लामी भाइयों को देखा गया है कि कभी सेहरी नहीं करते हैं तो फर्ख करते हैं और यूं कहते सुनाई देते हैं कि हमने तो सेहरी के बगैर ही रोजा रख लिया है। सेहरी के बगैर रोजा रखना कोई कमाल की बात नहीं बल्कि सेहरी की सुन्नत छूटने पर शर्मिंदा होना चाहिए, अफसोस करना चाहिए कि मुझसे एक सुन्नत छूट गई। नबी स.अ. ने फरमाया कि रोजा रखने के लिए सेहरी खाकर कुअत हासिल करो और दिन के वक्त आराम करो और रात में इबादत किया करो। उन्होंने कहा कि रोजा की बरकतें उस वक्त नसीब होगी कि जब हम तमाम आजा को रोजा रखेंगे वरना भूख और प्यास के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होगा। जैसा कि नबी स.अ.ने फरमाया कि बहुत से रोजेदार ऐसे हैं कि उनको उनके ही रोजे से भूख और प्यास के सिवा कुछ हासिल नहीं होता और बहुत से जागने वाले ऐसे हैं कि उनको जगाने के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होता। रोजा रखने के लिए भी उसी तरह नीयत शर्त है जिस तरह की नमाज, जकात वगैरह के लिए। बेनियत रोजा अगर कोई रख ले तो उसका रोजा नहीं होगा। इसलिए जरूरी है कि सेहरी खाते वक्ता रोजा रखने की नीयत कर लें।[sg_popup id=”5″ event=”onload”][/sg_popup]

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