टीबी जैसी गंभीर बीमारी होने के बावजूद 58 वर्षीय बुजुर्ग ने नहीं हारी हिम्मत

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  • नियमित दवाओं के सेवन से टीबी को दी मात
  • कोलकता के बड़े अस्पताल से मिली निराशा, सरकारी अस्पताल बना सहारा
  • अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं छोटे लाल मांझी

सीवान : टीबी होने के बाद कई मरीज हिम्मत हार जाते हैं लेकिन जिले में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने टीबी पीड़ित होने के बाद नियमित दवा का सेवन कर न सिर्फ टीबी पर जीत हासिल की बल्कि परिवार व डॉक्टरों के सहयोग से आज स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। आमतौर पर देखा जाता है टीबी का मरीज समाज में बताना नहीं चाहता कि उसे यह बीमारी है। ठीक होने के बाद भी वह इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाता कि लोगों को बताएं कि कभी उन्हें टीबी थी और अब वह एकदम स्वस्थ हैं। वहीं जिले में कुछ ऐसे टीबी चैंपियन भी हैं, जिन्होंने केवल इस बीमारी को हराया बल्कि वह दूसरों को भी जागरूक कर रहे हैं। सिवान जिले के दरौंदा प्रखंड के जलालपुर गांव निवासी 58 वर्षीय छोटे लाल मांझी को वर्ष 2019 में टीबी हो गया। छोटे लाल मांझी ने सरकारी अस्पताल में इलाज कराया। लगातार 7 माह इलाज कराने के बाद अब वह बिल्कुल ठीक हैं।

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कोलकाता में हुई थी तबीयत खराब:

छोटे लाल मांझी अपनी दास्तां बयां करते हुए कहते हैं कि वे कोलकता के एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। वहां पर एक दिन अचानक वे बेहोश होकर गिर गये। जिसके बाद उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। करीब एक सप्ताह तक इलाज चला लेकिन बीबिमारी का पता नहीं चल सका। इसी बीच उनके परिवार वाले उन्हें घर लेकर आ गये और सरकारी अस्पताल में दिखाने ले गये। जहां पर जांच में पता चला कि उन्हें टीबी है। जिसके बाद चिकित्सकों चिकित्सको की के सलाह पर वह नियमित दवा का सेवन करते रहे| 7 माह तक दवा सेवन के बाद वे अब पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं है।

समाज व परिवार के लोगों ने दिया साथ:

अक्सर यह देखने को मिलता है कि अगर किसी व्यक्ति को टीबी हो जाये तो समाज के साथ उनके परिवार वाले भी बेगाने जैसे व्यवहार करने लगते हैं है। उनसे दूरी बना लेते हैं। लेकिन छोटे लाल मांझी के परिवार के सदस्यों के साथ-साथ समाज के लोगों ने भी इस गंभीर बीबिमारी से लड़ने में उनका हौसला बढ़ाया और साथ दिया।

हौसला हो बुलंद तो, जीत निश्चित मिलेगी:

छोटे लाल मांझी कहते हैं है जब उन्हें पता चला कि टीबी हो गया है,। तो उनके मन में डर था कि अब क्या होगा? लेकिन वे हौसला नहीं हारे और उन्हें विश्वास था कि वे एक दिन इस गंभीर बीबिमारी को हराकर अपनी जिन्दगी की लड़ाई जंग जीत लेंगे। छोटे लाल मांझी का कहना है कि टीबी लाइलाज बीबिमारी नहीं है। इसका इलाज संभव है। अगर चिकित्सकों की सलाह मानी जाये तो टीबी को आसानी से हराया जा सकता है।

अब दूसरों को करते हैं है प्रेरित:

छोटे लाल मांझी कहते हैं है मैं तो अब पूरी तरह से ठीक हो चुका हूं। लेकिन मेरे समाज व गांव के किसी व्यक्ति को यह बीबिमारी नहीं हो इसके लिए वे लोगों को जागरूक भी करते हैं है। खासकर अपनी ने उम्र के व्यक्तियों को इस बात की जानकारी जरूर देते हैं कि अगर लगातार 15 दिनों से खांसी है तो सरकारी अस्पताल में जाकर अपनी ना जांच जरूर कराएँ करांए। सरकारी अस्पताल में टीबी की जांच की सुविधा नि:शुल्क दी जा रही है। इसके साथ नि:शुल्क दवा के साथ-साथ पोषण आहार के प्रति माह विभाग के द्वारा 5-5 सौ रुरूपये भी मिलता है। जिससे गरीबों को काफी सहूलियत सहुलियत होती है।